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देश के विकास में सबसे बड़ी चुनौती 'जनसंख्या विस्फोट' 

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05 Oct 24
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देश के विकास में सबसे बड़ी चुनौती 'जनसंख्या विस्फोट' 

आजकल जब भी आप अख़बार खोलते होंगे या ख़बरें सुनते होंगे, तो अक्सर एक शब्द सुनाई देता होगा, वह है 'जनसंख्या विस्फोट'। और सही भी है, आखिरकार हम लोग दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देश के निवासी बन चुके हैं। 2023 में हमने चीन को पीछे छोड़ दिया, और अब लगभग 142 करोड़ की आबादी के साथ जनसंख्या वृद्धि का सिलसिला लगातार जारी है। इस वृद्धि का कारण हम सब हैं लेकिन दिलचस्प रूप से इस अभूतपूर्व उपलब्धि का दोष सरकार पर मढ़ रहे हैं। लेकिन क्या जनसंख्या नियंत्रण केवल सरकार की जिम्मेदारी है? या हम, आप और इस देश के हर नागरिक को भी इस दिशा में कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने की जरुरत है? सोचिए ज़रा, क्या हमारे व्यक्तिगत निर्णय देश के सामने खड़ी इस जटिल समस्या का समाधान नहीं निकाल सकते?  

जानकारी के लिए बताता चलूँ कि1951 में भारत की जनसंख्या सिर्फ 36 करोड़ थी, और आज 142 करोड़ से ऊपर जा चुकी है। यह वृद्धि चिंता का विषय इसलिए भी है क्योंकि जब इसे गौर से देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि यह समस्या हमारे पर्यावरण, स्वास्थ्य, शिक्षा, और रोजगार जैसे मूलभूत संसाधनों पर कैसे असर डाल रही है। ज़रा सोचिए, विश्व की 18% जनसंख्या सिर्फ 2.4% भूमि पर रह रही है। इस असमानता का सीधा असर हमारी ज़िंदगी पर पड़ रहा है। 

अस्पताल में जाते हैं तो बिस्तर नहीं मिलता, डॉक्टरों और अस्पतालों की कमी की वजह से इलाज मिलना भी एक चुनौती बन गया है। शिक्षण संस्थानों में बच्चों की भीड़ होती है, एक शिक्षक पर जब सैकड़ों बच्चे हैं, तो पढ़ाई की गुणवत्ता पर असर पड़ना भी स्वभाविक है। शिक्षा की गिरती गुणवत्ता आने वाली पीढ़ी के भविष्य को भी अंधकारमय बना रही है। नौकरी के लिए लंबी कतारें लगी रहती हैं। हम हर साल लाखों युवाओं को शिक्षा दे रहे हैं, लेकिन नौकरी के अवसर उतनी तेजी से नहीं बढ़ रहे। इसका नतीजा ये है कि बेरोजगारी बढ़ रही है और इसके साथ ही गरीबी, भुखमरी और अपराध भी बढ़ रहे हैं। यह सभी समस्याएँ बता रही हैं कि अगर हम समय रहते नहीं जागे, तो हालात और भी खराब हो सकते हैं।

उपरोक्त बातों को पढ़कर शायद आपके मन में विचार आ रहा हो कि 'आखिर हम इसमें क्या ही कर सकते हैं!' बस यही पर थोड़ा ठहरकर सोचने की जरुरत है। यह समस्या इतनी बड़ी है कि इसे सुलझाने के लिए सिर्फ कुछ लोगों, सरकारों या जागरूकता अभियानों के भरोसे नहीं बैठा जा सकता। हमें भी इसमें अपनी पूरी भूमिका निभानी होगी। हमें यह भी समझाना होगा कि ऐसा नहीं है कि सरकार देश हित में काम नहीं कर रही है। सरकार ने पहले भी जनसँख्या नियंत्रण के लिए कई उपाय किये हैं। स्वतंत्र भारत में दुनिया का सबसे पहला परिवार नियोजन कार्यक्रम 1951 में आरंभ किया गया। किंतु इससे सफलता नहीं मिल सकी। इसके बाद 1975 के आपातकाल के दौरान बड़े स्तर पर जनसंख्या नियंत्रण के प्रयास किए गए। इसके बाद 2045 तक स्थिर जनसंख्या प्राप्त करने के लिए जनसंख्या नीति 2000 लाई गई। इसके अलावा स्वास्थ्य सेवाओं का सुधार, गर्भनिरोधक उपायों की मुफ्त उपलब्धता, और महिलाओं के सशक्तिकरण पर ध्यान भी दिया गया है। लेकिन बिना नागरिकों के भागीदारी के सभी योजनाएं केवल कागज पर ही रह गईं। अभी भी सरकार जनसंख्या नियंत्रण कानून 2024 लाने की कोशिश में लगी हुई है।
 
इसलिए अगर हम सच में बदलाव चाहते हैं, तो सबसे ज्यादा जरुरी है जागरूकता और जागरूकता का सीधा संबंध शिक्षा से है। जी, हाँ केवल एक यही तरीका है जिससे हम इस समस्या से निकल सकते हैं। बिना नागरिकों की जागरूकता के सरकार की कोई योजना, कोई नीति सफल नहीं होने वाली इसलिए जरुरी है कि पहले देश के नागरिक इस समस्या का हल निकालने के लिए शिक्षत हों और जागरूक बनें। हमें स्वेच्छा से प्रयास करने होंगे। छोटे परिवारों को अपनाना होगा। हम सभी जानते हैं कि परिवार नियोजन के साधन जनसंख्या नियंत्रण के लिए कितने जरूरी हैं। पर क्या हर कोई इनका सही तरीके से उपयोग कर रहा है? नहीं, क्योंकि जागरूकता की कमी है, विशेषकर ग्रामीण इलाकों में तो इसकी बेहद जरुरत है। आज भी हमारी जनसँख्या का एक बड़ा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों में ही बसता है इसलिए सबसे पहले यहीं से शुरुआत करनी होगी। जब लोग शिक्षित होंगे, तो वे समझदारी से अपने निर्णय ले सकेंगे। खासकर महिलाओं को शिक्षित करना बहुत जरूरी है। 

मेरा मानना है कि जब समस्या गंभीर हो तो केवल योजनाओं पर आश्रित नहीं रहा जा सकता। हमें यह समझना होगा कि इतनी विशाल जनसँख्या वाले देश में किसी भी प्रतिकूल स्थिति में बदलाव के लिए हर किसी को कदम से कदम मिलकर चलना होगा। इसके लिए हर नागरिक को अपना कर्तव्य समझना होगा और इससे निपटने के लिए अपनी ओर से प्रयास करने होंगे। इसके लिए सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि जनसंख्या नियंत्रण किसी बाहरी दबाव से नहीं, बल्कि हमारी व्यक्तिगत और सामूहिक जिम्मेदारी से होना चाहिए। अगर हम चाहते हैं कि हमारा देश खुशहाल और समृद्ध बने, तो हमें इस दिशा में मिलकर काम करना होगा। छोटे परिवार, जिम्मेदार नागरिक, और सही निर्णय हमें एक उज्जवल भविष्य की ओर ले जा सकते हैं। अब वक्त है, जागने का, समझने का, और सही कदम उठाते हुए, जनसंख्या विस्फोट को नियंत्रित करने का...
 


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