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अरावली की रिचर्ड मर्फी की सौ मीटर वाली परिभाषा अपूर्ण , अप्रचलित

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29 Dec 25
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अरावली की रिचर्ड मर्फी की सौ मीटर वाली परिभाषा अपूर्ण , अप्रचलित

वर्ष 2002 में जिस उदयपुर से   रिचर्ड मर्फी की   विवादित 100 मीटर वाली अपूर्ण पहाड़ी  परिभाषा  प्रकाश में आई , उसी उदयपुर के भूवैज्ञानियों, भूगोलविदों, तथा तकनीकविदों ने इस परिभाषा को अपूर्ण, अनुमान आधारित तथा अरावली के सन्दर्भ में अनुपयोगी बताया है।  


  प्रकृति रिसर्च संस्थान ,  इंस्टीट्यूट ऑफ टाउन प्लानर्स इंडिया , लक्षप्रा  फाउंडेशन तथा इंटैक  के संयुक्त तत्वाधान में अरावली पहाड़ संरक्षण पर  रविवार को आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार में
संगोष्ठी में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा पूरी श्रृंखला को एक निरंतर भूवैज्ञानिय भूआकृति मान सम्पूर्ण अरावली श्रंखला के पारिस्थितिकीय संरक्षण की घोषणा का स्वागत करते हुए विश्वास व्यक्त किया गया कि शीघ्र ही इस विवाद व उलझन का समाधान हो अरावली का समग्र संरक्षण हो सकेगा।


संगोष्ठी में  सुखाड़िया विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के पूर्व प्रोफेसर डॉ विनोद अग्रवाल , भूगोल विभाग के पूर्व प्रोफेसर डॉ पी आर व्यास , वर्तमान विभागाध्यक्ष प्रो सीमा जालान, विद्या भवन पॉलिटेक्निक के प्राचार्य डॉ अनिल मेहता  ने कहा कि 1968 में रिचर्ड मर्फी ने जो  परिभाषा दी वह वर्ष  1954 के हेमंड की लैंडफॉर्म क्लासिफिकेशन पर आधारित है । यह ऊंचाई,  भूविज्ञानीय उम्र तथा क्षरण पर आधारित है । यह अरावली तथा हिमालय  जैसी विशिष्ट पर्वतमालाओं के लिए  सीधे सीधे प्रयुक्त नहीं की जा सकती। ऐसे में इसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।

 संगोष्ठी में आग्रह किया गया कि अरावली के सामाजिक, सांस्कृतिक,  ऐतिहासिक, पुरातत्त्वीय , आध्यात्मिक,  पारिस्थितिकीय,  जल विज्ञानीय, भू विज्ञानीय तथा पर्यावरणीय महत्व को स्थापित करने तथा शोध अध्ययन के लिए   उदयपुर में अरावली शोध संस्थान की स्थापना की जानी चाहिए ।

आयोजक  प्रकृति रिसर्च संस्थान  के अध्यक्ष प्रो पी आर व्यास तथा इंस्टीट्यूशन ऑफ टाउन प्लानर्स  इंडिया  के रीजनल सदस्य , पूर्व  अतिरिक्त  मुख्य  नगर नियोजक सतीश श्रीमाली ने  कहा कि  ढलान तथा भूसंरचना, भूविज्ञानीय उम्र  को छोड़ केवल ऊंचाई के अप्रचलित मापदंड को जिओ स्पाशियल, रिमोट सेंसिंग , जी आई एस जैसी आधुनिक  तकनीकी के व युग में इस्तेमाल करना आश्चर्य पैदा करता है।

मुख्य अतिथि पूर्व वरिष्ठ नगर नियोजक बी एस कानावत ने कहा कि  रिसॉर्ट व अन्य  निर्माणों के लिए  पहाड़ियों को काटने  से भी अरावली श्रंखला को नुकसान पहुंच रहा है। आहड़ सभ्यता का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि अरावली में यह एक जिओ हेरिटेज है।

अध्यक्षीय उद्बोधन में इंटैक के पूर्व कनवीनर तथा  पूर्व कुलपति प्रो बी पी भटनागर ने कहा कि  मिनरल हमारी आवश्यकता है लेकिन यह पर्यावरण अनुकूल हो तथा रिक्त माइन खदानों के   पर्यावरणीय सुधार पर एक वैज्ञानिक प्लान होना चाहिए।

परिचर्चा में मीरा कन्या महाविद्यालय   के पूर्व प्रोफेसर ने कहा कि  अरावली श्रंखला के समग्र संरक्षण के लिए समाज को एकजुट होना पड़ेगा। 

समाजशास्त्री नंद किशोर शर्मा ने कहा कि उदयपुर से ही एक अपूर्ण परिभाषा की शुरुआत हुई और उदयपुर ही इसका सुधार करेगा ।

परिचर्चा में  पारितोष दूगड़,  हिम्मत सेठ ,   नवल किशोर शर्मा, राकेश दशोरा  डॉ  कल्पना मलावत,  डॉ ज्योति भटनागर , डॉ लक्ष्मण परमार  , हीरालाल व्यास,  शारदा जोशी, कनिका शर्मा, सोनाली दाधीच, किरण मीणा,कमलेश श्रीमाली , अरविन्द डिंडोर   आदि ने भी 100 मीटर के प्रावधान को वापस लेने का सुझाव दिया।


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