उदयपुर — पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, उदयपुर द्वारा आयोजित शिल्पग्राम उत्सव 2025 के चौथे दिन मुक्ताकाशी मंच पर देशभर की लोक-संस्कृतियों की मनोहारी प्रस्तुतियों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। शाम का मुख्य आकर्षण रहा महाराष्ट्र की लोक परंपरा कर्ण ढोल (शब्द भेद), जिसमें कलाकार ने आंखों पर पट्टी बांधकर ढोल की ताल के सहारे भीड़ में रखा नारियल खोज निकाला। इस अद्भुत कौशल पर दर्शक देर तक तालियां बजाते रहे।

कार्यक्रम में गोवा का घूमट और देखनी, जम्मू–कश्मीर का जगरना, ओडिशा का संभलपुरी नृत्य, मणिपुर का लाई हारोबा, त्रिपुरा का होजागिरी तथा गुजरात का गरबा प्रस्तुत किया गया। राजस्थान की सफेद आंगी गेर, नगाड़ा वादन और सहरिया स्वांग ने स्थानीय लोक-रंग को जीवंत किया, जबकि महाराष्ट्र के मल्लखंभ के रोमांचकारी करतबों ने उत्सव का उत्साह और बढ़ा दिया। हरियाणा की घूमर और पंजाब–कश्मीर के लोक नृत्यों ने भी दर्शकों की भरपूर सराहना पाई।
डब्ल्यूज़ेडसीसी निदेशक फुरकान खान ने कहा कि उदयपुरवासियों का कला प्रेम शिल्पग्राम उत्सव की सबसे बड़ी शक्ति है, इसी कारण हर वर्ष इसमें नए नवाचार और समृद्ध सांस्कृतिक आयाम जुड़ते जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि परिसर में चल रहे कला शिविर और लोक-कार्यशालाओं में सभी आयु वर्ग के लोग उत्साहपूर्वक भागीदारी निभा रहे हैं।
बंजारा मंच पर आयोजित ‘हिवड़ा री हुक’ में युवा प्रतिभाओं ने गीत–संगीत प्रस्तुत किए, जबकि प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम ने माहौल को और रोचक बना दिया। दिनभर शिल्पग्राम के विभिन्न थड़ों पर गवरी, चकरी, मांगणियार गायन, कच्ची घोड़ी, सुंदरी, बीन-जोगी, कठपुतली और अन्य लोक-कलाओं ने आगंतुकों का मनोरंजन किया।
गुरुवार शाम के लिए गोटीपुआ (ओडिशा), पंडवानी (छत्तीसगढ़), पुंग ढोल चेलम (मणिपुर) और नटुआ नृत्य (पश्चिम बंगाल) विशेष आकर्षण रहेंगे। नगर निगम ने दर्शकों की सुविधा के लिए सूरजपोल से शिल्पग्राम तक सिटी बस सेवा भी शुरू की है।
उत्सव ने एक बार फिर सिद्ध किया कि शिल्पग्राम केवल आयोजन नहीं, बल्कि लोक-संस्कृति, लोक-स्पंदन और परंपराओं के जीवंत उत्सव का जीवंत मंच है।