*वासुदेव देवनानी*
श्री अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के उन विरल व्यक्तित्वों में से थे, जिनकी पहचान केवल सत्ता या पद से नहीं, बल्कि विचार, संवेदना और राष्ट्रनिष्ठा से बनी। उनका व्यक्तित्व सचमुच “अटल” था। वे विचारों में दृढ़, आचरण में शालीन और व्यवहार में मानवीय संवेदनाओं से भरपूर थे। वे एक ऐसे राजनेता थे, जिन्हें विरोधी भी सम्मान की दृष्टि से देखते थे और समर्थक आदर्श जननेता मानते थे।
अटल जी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक ग्वालियर नगर में हुआ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहते हुए उन्होंने राष्ट्रसेवा का मार्ग चुना। राजनीति में आने के बाद उन्होंने जनसंघ और बाद में भारतीय जनता पार्टी को वैचारिक मजबूती दी। वे केवल एक दल के नेता नहीं थे, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों के सच्चे प्रहरी थे। संसद में उनके भाषण तर्क, मर्यादा और व्यंग्य का अद्भुत संगम होते थे। वे असहमति को भी सम्मान के साथ रखने की कला जानते थे।उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था। एक ओर वे कुशल प्रशासक और दूरदर्शी राजनेता थे, तो दूसरी ओर संवेदनशील कवि और साहित्य प्रेमी भी थे। उनकी कविताओं में राष्ट्रप्रेम, मानवीय पीड़ा और आशा की झलक मिलती है।
श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने चार दशकों से अधिक समय तक भारतीय संसद के सदस्य और एक जन सेवक के रूप में प्रतिनिधित्व किया। वे संसद के निचले सदन लोकसभा में दस बार और ऊपरी सदन राज्य सभा में दो बार सांसद चुने गए। लोकसभा में अटल बिहारी वाजपेयी का एक ओजस्वी भाषण सुनने के बाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था “यह लड़का एक दिन भारत का प्रधानमंत्री बनेगा।” वैचारिक मतभेद होने के बावजूद पंडित नेहरू ने वाजपेयी जी की वाक्-कला, तर्कशक्ति और लोकतांत्रिक मर्यादा की खुले मन से सराहना की थी जो कि कालान्तर में सही साबित हुई। वे 16 मई 1996 को पहली बार भारत के प्रधानमन्त्री बने । श्री अटल बिहारी वाजपेयी भारत के दसवें प्रधानमन्त्री थे। उन्होंने प्रधानमंत्री का पद तीन बार संभाला, वे पहली बार 13 दिन के लिए 16 मई 1996 से 1 जून 1996 तक प्रधानमंत्री रहे। फिर लगातार 2 बार क्रमशः 8 महीने के लिए 19 मार्च 1998 से 13 अक्टूबर 1999 और फिर वापस 13 अक्टूबर 1999 से 22 मई 2004 तक भारत के प्रधानमन्त्री रहे।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक और आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर अपना जीवन शुरू करने वाले अटल जी राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन (राजग) सरकार के पहले प्रधानमन्त्री बने तथा एक गैर काँग्रेसी प्रधानमन्त्री रहते हुए अपने पद के 5 वर्ष निर्बाध रूप से पूरे किए। वे ऐसे पहले विरले प्रधानमंत्री बने जिन्होंने 24 दलों के गठबन्धन से एनडीए सरकार बनाई जिसमें 81 मन्त्री थे।
"हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा”— उनकी मौलिक कविता की यह पंक्ति उनके जीवन-दर्शन को बखूबी अभिव्यक्त करती है। कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने कभी धैर्य और संतुलन नहीं खोया। भारत के प्रधानमंत्री के रूप में श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत को एक नई दिशा और दृष्टि दी। राजस्थान के पोखरण में परमाणु परीक्षण के माध्यम से उन्होंने भारत की सामरिक क्षमता को विश्व के सामने दृढ़ता से स्थापित किया। साथ ही, “बस यात्रा” और "शांति पहल* के जरिए उन्होंने पड़ोसी देशों के साथ संवाद का साहसिक प्रयास भी किया। यह उनके अटल व्यक्तित्व का ही प्रमाण था कि वे शक्ति और शांति दोनों के संतुलन में विश्वास रखते थे। अटल जी की सबसे बड़ी विशेषता थी राजनीति में नैतिकता का आचरण करना। सत्ता में रहते हुए भी उन्होंने अपने जीवन मूल्यों और सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। गठबंधन राजनीति के दौर में उन्होंने सबको साथ लेकर चलने की मिसाल पेश की। उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना और स्वर्णिम चतुर्भुज जैसी योजनाओं से देश के बुनियादी ढांचे को नई गति दी। ये निर्णय उनकी दूरदृष्टि और विकासशील सोच को दर्शाते हैं। प्रतिपक्ष के प्रति उनका सम्मान लोकतंत्र की परिपक्वता का उदाहरण था। वे मानते थे कि मजबूत लोकतंत्र के लिए मजबूत विपक्ष आवश्यक है। यही कारण था कि वे संसद को केवल सत्ता का मंच नहीं, बल्कि विचारों का संगम मानते थे। उनका आचरण राजनीति को मर्यादा और गरिमा प्रदान करता था। वाजपेयी जी का व्यक्तित्व आज भी भारतीय राजनीति के लिए प्रेरणास्रोत है। उन्होंने दिखाया कि दृढ़ विचारधारा के साथ भी संवाद, सहमति और करुणा संभव है। वे सचमुच एक अटल व्यक्तित्व के धनी थे जो समय, परिस्थिति और आलोचना के बावजूद अपने सिद्धांतों पर हमेशा अडिग रहे।
अटल जी की शख्सियत की बेजोड़ और अनूठी मिसाल तब देखने को मिली जब कांग्रेस शासन काल में प्रधानमंत्री श्री पी. वी. नरसिंह राव ने उन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का पक्ष रखने के लिए भेजा। उस समय वाजपेयी जी सत्ता पक्ष में नहीं, बल्कि विपक्ष के प्रमुख नेता थे। इसके बावजूद, राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हुए नरसिंह राव सरकार ने उन्हें भारत का प्रतिनिधि बनाया। यह अवसर उस समय आया जब कश्मीर और मानवाधिकारों के मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत को घेरने का प्रयास किया जा रहा था। पाकिस्तान भारत के आंतरिक मामलों का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की कोशिश कर रहा था। ऐसे संवेदनशील समय में भारत को एक ऐसे नेता की आवश्यकता थी, जिनकी अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता, वाक्-कौशल, राजनीतिक अनुभव और नैतिक विश्वसनीयता निर्विवाद हो और यह गुण श्री अटल बिहारी वाजपेयी में सहज रूप से विद्यमान थे। संयुक्त राष्ट्र में श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अत्यंत संतुलित, तथ्यपरक और दृढ़ भाषा में भारत का पक्ष रखा। उन्होंने स्पष्ट किया कि कश्मीर भारत का आंतरिक विषय है, और किसी भी प्रकार का आतंकवाद मानवाधिकारों का सबसे बड़ा उल्लंघन है। उनके तर्कों में आक्रोश नहीं, बल्कि आत्मविश्वास और संयम था, जिसने भारत की स्थिति को मजबूती प्रदान की। इस घटना का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यह था कि यह किसी पार्टी की राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रहित को प्राथमिकता देने का उदाहरण बनी। उन्होंने यह संदेश दिया कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत एक स्वर में बोलता है, चाहे देश के भीतर राजनीतिक मतभेद हों। यह प्रसंग भारतीय संसदीय लोकतंत्र की परिपक्वता, विपक्ष की जिम्मेदारी और नेतृत्व की उदारता का सशक्त प्रतीक बना। वाजपेयी जी का संयुक्त राष्ट्र में भारत का पक्ष रखना केवल एक कूटनीतिक घटना नहीं थी, बल्कि यह भारत की एकता, गरिमा और आत्मसम्मान की वैश्विक अभिव्यक्ति भी बनी।
अटल जी हिन्दी कवि, पत्रकार एवं एक प्रखर वक्ता थे। वे भारतीय जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के संस्थापकों में से एक थे। वे 1968 से 1973 तक जनसंघ और 1980 में भाजपा के संस्थापक अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने लम्बे समय तक राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक समाचार पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेने के कारण इन्हे राजनीति का भीष्म पितामह भी कहा जाता था।कालांतर में वाजपेयी जी अपने स्वास्थ्य सम्बन्धी चिन्ताओं के कारण सक्रिय राजनीति से अलग होकर नई दिल्ली में 6-ए कृष्णामेनन मार्ग स्थित सरकारी आवास में रहते थे लेकिन विधि की विडंबना से लम्बी बीमारी के बाद 16 अगस्त 2018 को नई दिल्ली के एम्स (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) में श्री वाजपेयी जी का निधन हो गया। राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में उनकी अन्तिम यात्रा बहुत भव्य तरीके से निकाली गयी जिसमें प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी समेत सैंकड़ों नेता गण पैदल चलते हुए गन्तव्य तक पहुंचे। श्री अटल बिहारी वाजपेयी के समाधि स्थल का नाम “सदैव अटल” रखा गया है जो कि नई दिल्ली में राजघाट और विजय घाट के पास राष्ट्रीय स्मृति स्थल परिसर में स्थित है। साथ ही इसे कमल के फूल के आकार में बनाया गया है। "सदैव अटल” नाम उनके व्यक्तित्व, विचारों और राष्ट्र के प्रति उनकी अटल निष्ठा का प्रतीक है।
*राजस्थान से रहा नजदीकी रिश्ता*
अटल बिहारी वाजपेयी जी का राजस्थान से केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि भावनात्मक और वैचारिक रिश्ता रहा। वे की प्रदेश के वीरता भरे इतिहास, संस्कृति और आत्मसम्मान से गहराई से जुड़ाव महसूस करते थे। यही कारण था कि राजस्थान उनकी राजनीति और सार्वजनिक जीवन में विशेष स्थान रखता था।राजस्थान की राजनीति में भी अटल जी का मार्गदर्शक प्रभाव रहा। पूर्व उप राष्ट्रपति श्री भैरोंसिंह शेखावत,पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह जसोल जैसे नेताओं के साथ उनका स्नेहपूर्ण और मार्गदर्शक संबंध रहा। वे राजस्थान के नेताओं को न केवल संगठनात्मक मजबूती देते थे, बल्कि लोकतांत्रिक मर्यादाओं और वैचारिक स्पष्टता का पाठ भी पढ़ाते थे।प्रधानमंत्री रहते हुए वाजपेयी जी ने राजस्थान के विकास को विशेष प्राथमिकता दी। स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना, राष्ट्रीय राजमार्गों का विस्तार, सीमावर्ती क्षेत्रों में आधारभूत ढांचे का विकास और जल-संकट से जूझ रहे क्षेत्रों के लिए विशेष योजनाएँ लागू कराई जिससे राजस्थान को इन योजन का प्रत्यक्ष लाभ मिला। सीमावर्ती राज्य होने के कारण सुरक्षा और सड़क संपर्क को लेकर वे विशेष रूप से सजग रहे। अटल जी को राजस्थान की लोकसंस्कृति, लोकगीत और साहित्य से भी लगाव था। वे राजस्थानी वीरगाथाओं और इतिहास से प्रेरणा लेते थे। सार्वजनिक सभाओं में वे अक्सर राजस्थान की धरती की प्रशंसा करते हुए कहते थे कि यह प्रदेश शौर्य, त्याग और आत्मसम्मान का प्रतीक है।राजस्थान के प्रति उनका लगाव इस बात से भी स्पष्ट होता है कि वे यहाँ बार-बार आते रहे, आमजन से संवाद करते रहे और कार्यकर्ताओं के साथ आत्मीय संबंध बनाए रखा। राजस्थान की जनता भी उन्हें केवल एक राष्ट्रीय नेता नहीं, बल्कि अपना अपना नेता मानती थी।इस प्रकार श्री अटल बिहारी वाजपेयी और राजस्थान का रिश्ता राजनीति से आगे बढ़कर आत्मीयता, विश्वास और साझा मूल्यों का रिश्ता था जो सदैव अस्मरणीय रहेगा।
मेरे राजनीतिक जीवन में भी स्वर्गीय वाजपेयी जी अहम स्थान रहा है। उनसे मिले स्नेह,अपनत्व और मार्गदर्शन से मुझे हमेशा एक नई प्रेरणा मिली। अटल जी की जन्म शती पर मेरी पुस्तक “सनातन संस्कृति की अटल दृष्टि” का हाल ही उपराष्ट्रपति श्री सी पी राधाकृष्णन जी ने नई दिल्ली के उप राष्ट्रपति भवन एनक्लेव में केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री श्री नितिन गडकरी, केन्द्रीय कृषि राज्य मन्त्री श्री भागीरथ चौधरी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख माननीय श्री सुनील आम्बेकर, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष श्री मिलिंद मराठे उपराष्ट्रपति के सचिव श्री अमित खरे और अन्य कई गणमान्य लोगों की उपस्थिति में लोकापर्ण किया है। इस पुस्तक में मैने बहुत ही विनम्रता के साथ वाजपेयी जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डालने का प्रयास किया है।
भारत के राजनीतिक इतिहास में श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का नाम सदैव सम्मान, गरिमा और राष्ट्रभक्ति के प्रतीक के रूप में अंकित रहेगा और वे सदैव भारतीय राजनीति का एक अटल नक्षत्र बने रहेंगे। उनकी जन्म शती पर मेरा उन्हें शत- शत नमन और विनम्र श्रद्धांजलि.....।